प्रॉपर्टी खरीदते समय इन ज़रूरी डॉक्यूमेंट्स की कर लें जांच, वरना काटने पड़ सकते हैं कोर्ट-कचहरी के चक्कर— एक चूक और जिंदगी भर की सजा!
आज के दौर में प्रॉपर्टी खरीदना हर किसी का सपना होता है, लेकिन ये सपना कभी-कभी एक बुरे ख्वाब में भी बदल सकता है—वो भी सिर्फ एक छोटी सी लापरवाही के कारण। प्रॉपर्टी की कीमतें आसमान छू रही हैं और इस कारण ज़रा सी गलती आपके लाखों-करोड़ों के नुकसान का कारण बन सकती है। इसलिए ज़रूरी है कि प्रॉपर्टी खरीदते समय आप सभी ज़रूरी दस्तावेजों की जांच पूरी सावधानी से करें, ताकि बाद में कोर्ट-कचहरी के चक्कर न काटने पड़ें।
प्रॉपर्टी खरीदना क्यों हो गया है जोखिम भरा?
बढ़ती कीमतों और कानूनी पेंचों के कारण आज प्रॉपर्टी खरीदना केवल पैसे का ही नहीं, समझदारी और सतर्कता का भी खेल बन चुका है। आए दिन फर्जीवाड़े, डुप्लीकेट दस्तावेज, झूठे मालिकाना हक और विवादित संपत्तियों के मामले सामने आते हैं। कई बार खरीदार बिना दस्तावेजों की गहराई से जांच किए संपत्ति खरीद लेते हैं और बाद में उन्हें वर्षों तक कोर्ट के चक्कर लगाने पड़ते हैं।
प्रॉपर्टी खरीदते समय इन बातों का ज़रूर रखें ध्यान:
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लोकेशन की सत्यता और भविष्य की वैल्यूएशन।
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विक्रेता की पहचान और मालिकाना हक की पुष्टि।
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संपत्ति पर किसी भी तरह के कानूनी विवाद की जांच।
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सभी जरूरी दस्तावेजों की प्रामाणिकता की जांच।
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प्रोजेक्ट RERA में पंजीकृत है या नहीं, यह जांचना।
जरूरी दस्तावेज़ जिनकी जांच करना बेहद जरूरी है:
1. प्रॉपर्टी टाइटल डीड (Title Deed)
यह दस्तावेज साबित करता है कि विक्रेता वास्तव में उस संपत्ति का कानूनी मालिक है या नहीं। टाइटल डीड में साफ-साफ यह लिखा होना चाहिए कि विक्रेता के पास उस संपत्ति को बेचने का पूरा अधिकार है। बिना वैध टाइटल डीड के संपत्ति खरीदना बहुत बड़ा जोखिम है।
2. चेन ऑफ टाइटल डॉक्यूमेंट्स (Chain of Documents)
यह दस्तावेज़ दर्शाता है कि संपत्ति पहले किन-किन लोगों के पास थी और कैसे-कैसे उसका ट्रांसफर हुआ। इससे आप यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि बीच में किसी भी ट्रांजेक्शन में कोई अनियमितता तो नहीं हुई। अगर चेन टूटती है तो यह गंभीर शक का विषय होता है।
3. एन्कम्ब्रन्स सर्टिफिकेट (Encumbrance Certificate)
यह प्रमाणपत्र दर्शाता है कि प्रॉपर्टी पर कोई कर्ज, लोन या टैक्स बकाया तो नहीं है। इसे सब-रजिस्ट्रार ऑफिस से प्राप्त किया जा सकता है। अगर प्रॉपर्टी पर कोई बंधक या कानूनी विवाद है, तो यह सर्टिफिकेट उसे साफ-साफ दिखाता है।
4. ऑक्यूपेंसी सर्टिफिकेट (Occupancy Certificate)
जब कोई बिल्डर निर्माण कार्य पूरा कर लेता है और स्थानीय प्राधिकरण द्वारा इसे रहने योग्य घोषित किया जाता है, तब यह प्रमाणपत्र दिया जाता है। यह प्रमाणपत्र लेना बेहद जरूरी है क्योंकि इसके बिना आप कानूनी रूप से उस प्रॉपर्टी में रह नहीं सकते।
5. पजेशन लेटर (Possession Letter)
यह दस्तावेज बिल्डर द्वारा खरीदार को दिया जाता है, जिसमें कब्जा देने की तारीख और शर्तें स्पष्ट रूप से लिखी होती हैं। यह दस्तावेज लोन प्रक्रिया में भी आवश्यक होता है लेकिन यह अकेला कब्जे का अधिकार नहीं देता। रजिस्ट्री होना इसके बाद का कदम है।
6. प्रॉपर्टी टैक्स रसीद और बकाया जांच (Property Tax Receipts)
आपको यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उस प्रॉपर्टी पर कोई बकाया टैक्स न हो। स्थानीय नगर निगम कार्यालय से इसकी जानकारी प्राप्त की जा सकती है। यदि टैक्स बकाया है, तो वह भविष्य में आपसे वसूला जा सकता है।
7. यूटिलिटी बिल और कार अलॉटमेंट लेटर
पानी, बिजली, गैस आदि के बिल सही नाम पर हैं या नहीं, यह देखना जरूरी है। कार अलॉटमेंट लेटर से आपको यह पता चलता है कि पार्किंग की क्या स्थिति है और क्या वह आपके नाम पर है।
8. रेसीडेंट वेलफेयर एसोसिएशन से एनओसी (NOC from RWA)
अगर आप किसी सोसाइटी या हाउसिंग प्रोजेक्ट में फ्लैट खरीद रहे हैं, तो उस सोसाइटी की वेलफेयर एसोसिएशन से एनओसी लेना जरूरी होता है। इससे आप यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि उस प्रॉपर्टी को लेकर कोई आंतरिक विवाद नहीं है।
9. भूमि रूपांतरण प्रमाणपत्र (Land Use Certificate)
यदि आप ज़मीन खरीद रहे हैं तो यह देखना जरूरी है कि वह कृषि भूमि तो नहीं है। यदि है, तो उसे आवासीय उपयोग में बदलने का प्रमाणपत्र आवश्यक है। राज्य सरकार द्वारा अधिकृत रूपांतरण प्रमाणपत्र के बिना ऐसी भूमि खरीदना गैरकानूनी हो सकता है।
10. सेल एग्रीमेंट और रजिस्ट्री (Sale Agreement & Registry)
सेल एग्रीमेंट में विक्रेता और खरीदार के बीच हुए समझौते की पूरी जानकारी होती है। वहीं, रजिस्ट्री यानी रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया के बाद ही संपत्ति का कानूनी ट्रांसफर होता है। इन दोनों दस्तावेजों की जांच और सत्यापन अनिवार्य है।
राज्यों के नियमों की जानकारी भी है बेहद जरूरी:
हर राज्य में भूमि और प्रॉपर्टी से संबंधित नियम अलग-अलग होते हैं। जैसे कुछ राज्यों में गैर-कृषक व्यक्ति कृषि भूमि नहीं खरीद सकता, तो कुछ राज्यों में बाहरी राज्य के व्यक्ति के लिए संपत्ति खरीदने पर रोक होती है। उदाहरण के लिए, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर में ऐसे प्रतिबंध लागू हैं। इसलिए प्रॉपर्टी खरीदने से पहले राज्य विशेष के कानूनों की पूरी जानकारी लेनी जरूरी है।
रेरा (RERA) रजिस्ट्रेशन: ग्राहक सुरक्षा की पहली शर्त
RERA (Real Estate Regulatory Authority) एक्ट 2016 के तहत अब किसी भी हाउसिंग प्रोजेक्ट को कानूनी मान्यता तभी मिलती है जब वह संबंधित राज्य की RERA वेबसाइट पर पंजीकृत हो। RERA रजिस्ट्रेशन से आपको यह लाभ मिलता है कि:
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प्रोजेक्ट की पूरी जानकारी पारदर्शिता से मिलती है।
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बिल्डर की विश्वसनीयता की जांच संभव होती है।
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बिल्डर अगर प्रोजेक्ट समय पर पूरा नहीं करता, तो ग्राहक को मुआवजा मिल सकता है।
कानूनी सलाह अवश्य लें
प्रॉपर्टी खरीदते समय किसी अनुभवी वकील या कानूनी सलाहकार की मदद लेना एक समझदारी भरा कदम है। वकील न केवल दस्तावेजों की जांच करते हैं, बल्कि आपको बतातें हैं कि कौन सा दस्तावेज नकली या फर्जी हो सकता है। साथ ही यदि कोई कानूनी अड़चन हो तो वे आपको सही सलाह दे सकते हैं।
निष्कर्ष : सतर्कता ही सुरक्षा है
प्रॉपर्टी की खरीदारी एक भावनात्मक और आर्थिक रूप से बहुत बड़ा फैसला होता है। इसमें ज़रा सी चूक न केवल आपकी जमा पूंजी डुबा सकती है, बल्कि आपको वर्षों तक कोर्ट-कचहरी के चक्कर में भी डाल सकती है। इसलिए जब भी आप कोई संपत्ति खरीदने जाएं, तो ऊपर बताए गए दस्तावेजों की पूरी तरह से जांच करें। जरूरत हो तो किसी कानूनी विशेषज्ञ की मदद लें और बिना किसी जल्दबाज़ी के सोच-समझकर फैसला लें।
याद रखें, संपत्ति खरीदी जा सकती है, लेकिन शांति और भरोसा दस्तावेजों की जांच से ही मिलते हैं।
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