हर साल सितंबर आते ही Apple नया iPhone लॉन्च करता है। सोशल मीडिया पर अनबॉक्सिंग वीडियो छा जाते हैं, इन्फ्लुएंसर्स नए मॉडल हाथों में लेकर फीचर्स और रंगों का बखान करते हैं, और अचानक दफ्तरों से लेकर व्हाट्सऐप ग्रुप तक हर जगह बातचीत सिर्फ नए iPhone पर टिक जाती है।
इस साल भी iPhone 17 सीरीज़ लॉन्च होते ही वही नज़ारा देखने को मिला। भारत में इसका बेस मॉडल ₹82,900 से शुरू होता है। iPhone 17 Pro की कीमत ₹1,34,900, Pro Max की ₹1,49,900, और नया iPhone Air ₹1,19,900 का है।
ज्यादातर लोगों के लिए iPhone केवल एक मोबाइल नहीं बल्कि स्टेटस और प्रेस्टिज का प्रतीक है। लेकिन असली तस्वीर इसकी कीमत दिखाती है। एक ऐसे देश में जहाँ औसत मासिक वेतन ₹30,000–₹40,000 है, वहाँ iPhone की कीमत कई बार पूरी महीने की तनख्वाह से भी ज्यादा होती है।
यहीं पर काम आता है EMI (किस्तों में भुगतान)। EMI फोन को "सस्ता" और "पॉसिबल" बना देती है। अचानक ₹1.5 लाख का फोन सिर्फ ₹6,000–₹7,000 महीने का लगने लगता है। लेकिन इन आसान किश्तों में छुपा होता है एक वित्तीय जाल, जिसका असर लोग देर से समझते हैं।
1. कब iPhone एक एसेट है और कब सिर्फ कर्ज़
कई लोग कहते हैं iPhone खरीदना एक निवेश है। कुछ मामलों में यह सही भी है।
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एसेट का मामला:
अगर आप फ़ोटोग्राफ़र, YouTuber, Instagram क्रिएटर, पत्रकार या ऐसा कोई प्रोफेशनल हैं जिसका काम सीधा-सीधा फोन पर निर्भर करता है, तब iPhone आपके लिए कमाई का औज़ार है। हाई क्वालिटी कैमरा और एडिटिंग फीचर्स आपकी आय बढ़ाने में मदद करते हैं। ऐसे में फोन अपनी कीमत निकाल देता है। -
कर्ज़ का मामला:
लेकिन ज्यादातर लोगों के लिए iPhone एसेट नहीं, सिर्फ़ लग्ज़री है। कॉल, सोशल मीडिया, मूवी देखना और तस्वीरें क्लिक करना—ये सब कम दाम वाले फोन से भी हो सकता है। ऐसे में ₹1.5 लाख का फोन सिर्फ़ कर्ज़ से खरीदी गई शौक़ीन चीज़ बन जाता है, जिसकी कीमत हर महीने घटती है।
2. EMI क्यों दिखती आसान—पर असलियत अलग है
ज़्यादातर लोग सोचते हैं, “बस ₹6,000 महीने की बात है, ये तो मैनेज हो जाएगा।” लेकिन असलियत कुछ और है।
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आय का बड़ा हिस्सा: अगर आपकी सैलरी ₹40,000 है, तो ₹6,000 EMI का मतलब है 15% तनख्वाह सिर्फ फोन पर।
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मौक़े का नुकसान: यही ₹6,000 अगर आप म्यूचुअल फंड SIP में डालें, तो 10 साल बाद लाखों बन सकते हैं। EMI में यह पैसा सिर्फ घटती कीमत वाले गैजेट पर खर्च हो रहा है।
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मनोवैज्ञानिक धोखा: किस्तों में कीमत छोटी दिखती है, पर असल में आप पूरी रकम के साथ-साथ ब्याज भी चुका रहे होते हैं, और निवेश का मौका खो देते हैं।
3. EMI फोन से ज़्यादा लंबी चलती है
हक़ीक़त यह है कि iPhone की कीमत आपकी EMI कम होने से भी तेज़ गिरती है।
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रीसेल वैल्यू: आँकड़े बताते हैं कि iPhone पहले ही साल में 40–50% वैल्यू खो देता है और दो साल में लगभग 65% तक।
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EMI की अवधि: 24 महीने की EMI का मतलब है कि आप फोन की किश्त तब तक चुकाते रहेंगे जब तक फोन पुराना, स्क्रैच्ड और बैटरी कमजोर न हो जाए।
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सबसे बुरा केस: कई लोग EMI पर लिया फोन बीच में बेच देते हैं नया मॉडल लाने के लिए, लेकिन पुरानी किश्तें फिर भी चलती रहती हैं। यानी आप ऐसी चीज़ की कीमत चुका रहे होते हैं जो अब आपके पास भी नहीं है।
4. ग्लोबल तुलना: भारत में बोझ ज़्यादा क्यों है
अमेरिका में औसत मासिक वेतन करीब ₹3.5 लाख है। वहाँ iPhone 17 (₹82,900) उनकी सैलरी का सिर्फ 7% है।
भारत में औसत मासिक वेतन करीब ₹33,000 है। वही फोन यहाँ 250% आय यानी दो महीने से भी ज़्यादा की पूरी तनख्वाह का है।
यही वजह है कि भारत में लोग EMI पर ज़्यादा निर्भर करते हैं। लेकिन यही EMI उन्हें वित्तीय जोखिम में डाल देती है।
5. EMI के लिए छोड़े गए ज़रूरी खर्च
कई लोग iPhone EMI के लिए दूसरे ज़रूरी खर्च काटने लगते हैं—
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इंश्योरेंस प्रीमियम टालना या बंद करना
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SIP और निवेश रोक देना
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खर्चे कम करना: बाहर खाना, घूमना-फिरना छोड़ना
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कर्ज़ या क्रेडिट कार्ड पर निर्भर होना
ये सब सिर्फ़ एक ऐसे फोन के लिए जो अगले साल ही “आउटडेटेड” कहलाने लगेगा।
6. इमोशनल हाई बनाम फाइनेंशियल लो
iPhone खरीदने का अनुभव एक जैसा होता है:
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शुरुआती खुशी: नई डिब्बी, चमकता लोगो, दोस्तों का ध्यान।
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आदत बनना: कुछ हफ़्तों बाद यह भी किसी फोन जैसा लगता है।
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समस्या आना: बैटरी कमज़ोर होना, स्क्रैच लगना, नया मॉडल आ जाना।
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पछतावा: EMI अब भी कट रही है, लेकिन फोन पुराना लगने लगा है।
यही Apple का बिज़नेस मॉडल है, लेकिन ग्राहक के लिए यह पछतावे का चक्र है।
7. स्टेटस सिंबल की असलियत
भारत में iPhone सिर्फ़ फोन नहीं बल्कि स्टेटस सिंबल है। इसे रखने से लोग खुद को “एलीट” महसूस करते हैं।
लेकिन सच यह है कि सच्ची सफलता कर्ज़ से नहीं, वित्तीय आज़ादी से आती है। अगर एक फोन के लिए आपको बचत और निवेश छोड़ने पड़ रहे हैं, तो वह स्टेटस असली नहीं है।
8. EMI जाल से बचने के स्मार्ट तरीके
अगर आप वाकई iPhone चाहते हैं, तो बेहतर विकल्प हैं—
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पुराने मॉडल लें: iPhone 15 या 16 आज भी बेहतरीन चलते हैं और काफ़ी सस्ते हैं।
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रीफर्बिश्ड खरीदें: सर्टिफाइड प्री-ओन्ड फोन 30–40% सस्ते मिलते हैं।
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पहले बचत करें, बाद में खरीदें: हर महीने ₹5,000 बचाइए। 18 महीने में बिना EMI के फोन ले सकते हैं।
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साधन के हिसाब से चुनें: कई एंड्रॉयड फ्लैगशिप आधी कीमत में वही परफॉर्मेंस देते हैं।
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वैल्यू पर ध्यान दें: बड़ी रकम सिर्फ़ उन चीज़ों पर खर्च करें जो कमाई लाए या वैल्यू बढ़ाएँ।
9. दो दोस्तों की कहानी
मेरे दो दोस्तों के अनुभव EMI के फर्क साफ़ दिखाते हैं:
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केस 1: फ़ोटोग्राफ़र
उसने ₹1.4 लाख का iPhone 15 Pro Max EMI पर लिया। वह शादी का फोटोग्राफर है। एक साल में ही फोन से ₹3 लाख कमा लिए। फोन उसके लिए एसेट बन गया। -
केस 2: IT प्रोफेशनल
₹45,000 महीने कमाने वाले दोस्त ने iPhone 14 EMI पर लिया। एक साल बाद उसे ₹55,000 में बेच दिया, लेकिन अभी भी ₹40,000 की किश्तें बची थीं। SIP बंद हो गई, बचत नहीं रही। उसके लिए EMI एक वित्तीय बोझ साबित हुई।
10. अंतिम संदेश: सोच-समझकर EMI लें
iPhone शानदार डिवाइस है। लेकिन सच यह है:
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यह ज़्यादातर लोगों के लिए निवेश नहीं, खर्चा है।
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यह EMI से खरीदा जाए तो तेज़ी से घटती वैल्यू वाली देनदारी है।
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EMI के बदले बचत और निवेश करना हमेशा बेहतर है।
अगर आप iPhone सच में पसंद करते हैं और बिना EMI व बिना बचत छेड़े सीधे खरीद सकते हैं, तो ज़रूर लीजिए। लेकिन अगर आपको 24 महीने की तनख्वाह खींचनी पड़ रही है, तो यह कदम भविष्य में पछतावा देगा।
याद रखिए: iPhone की चमक जल्दी फीकी पड़ती है, लेकिन कर्ज़ लंबे समय तक बोझ बन जाता है।
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