आज के भारत में सफलता का मतलब क्या रह गया है?
पहले सफलता का मतलब होता था सुरक्षा — अब इसका मतलब है दिखाना।
ब्रांडेड कपड़े, विदेश यात्राएं और अब लग्ज़री कारें – सब बन गए हैं सफलता के प्रतीक।
लेकिन Dime की संस्थापक चंद्रलेखा एम.आर. के एक वायरल LinkedIn पोस्ट ने एक कड़वी सच्चाई उजागर की है — कई उच्च वेतन पाने वाले लोग अपनी सैलरी का आधे से ज़्यादा हिस्सा लग्ज़री कार की EMI भरने में लगा रहे हैं।
एक Reddit पोस्ट का हवाला देते हुए, उन्होंने बताया कि ₹2 लाख मासिक कमाने वाले कुछ पेशेवर ₹70–₹80 लाख की मर्सिडीज़ जैसी कारें खरीद रहे हैं — केवल ₹7–₹9 लाख एडवांस देकर, बाकी पैसा 7 साल के लोन पर।
पहली नज़र में तो यह “सपना पूरा करने” जैसा लगता है, लेकिन असलियत में यह “वित्तीय बोझ” है — जो सालों तक आपकी आज़ादी और बचत दोनों को खत्म कर सकता है।
₹1.2 लाख EMI का सपना या जाल?
पोस्ट के मुताबिक, ₹2 लाख महीना कमाने वाले कई लोग ₹1.2 लाख रुपये की मासिक EMI भर रहे हैं — यानी अपनी आय का 60% सिर्फ कार पर।
अब सोचिए — बाकी ₹80,000 में किराया, ग्रोसरी, बिजली, पेट्रोल, इंश्योरेंस और बाकी खर्चे कैसे चलेंगे?
इसके ऊपर, कार जैसे ही शोरूम से बाहर निकलती है, उसकी कीमत 10–15% तक घट जाती है।
दिखावे की कीमत यही है — लक्ज़री आपकी जेब से शांति चुरा लेती है।
सोशल मीडिया का “Flex Culture”
चंद्रलेखा ने अपने पोस्ट में लिखा,
“हमारे सोशल मीडिया फीड में ऐसे लोग भरे पड़े हैं जो ऐसी चीजें दिखा रहे हैं जो वे शायद अफोर्ड भी नहीं कर सकते। इंस्टाग्राम हमें सिखाता है कि लग्ज़री कार मतलब सफलता। लेकिन क्या आपका बैंक अकाउंट भी यही कहता है?”
आज की पीढ़ी के लिए, कार की जरूरत नहीं — “कार दिखाने” की जरूरत ज़्यादा बड़ी है।
सोशल मीडिया पर दिखने वाला “परफेक्ट लाइफ” असल में क्रेडिट कार्ड और लोन की चकाचौंध से बनी होती है।
मनोवैज्ञानिक इसे कहते हैं “स्टेटस कंजम्प्शन” — यानी दिखावे के लिए खरीदारी करना, न कि ज़रूरत के लिए।
मिडिल क्लास की बढ़ती आकांक्षाएं और घटती समझदारी
भारत का मध्यम वर्ग पहले बचत के लिए जाना जाता था। अब वही वर्ग लाइफस्टाइल इन्फ्लेशन में फंस गया है — जितनी आमदनी बढ़ती है, खर्च उससे ज़्यादा बढ़ जाता है।
चंद्रलेखा ने लिखा:
“अगर आप ₹24 लाख सालाना कमाते हैं, तो ₹12 लाख की कार ठीक है। लेकिन ₹80 लाख की नहीं।”
वित्तीय विशेषज्ञों के अनुसार, कार खरीदने का 20/4/10 नियम अपनाना चाहिए:
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20% डाउन पेमेंट करें
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4 साल से ज़्यादा का लोन न लें
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और आपकी EMI आपकी मासिक आय के 10% से ज़्यादा न हो
इस हिसाब से ₹2 लाख कमाने वाले को ₹20,000 तक की EMI लेनी चाहिए — न कि ₹1.2 लाख।
सोशल मीडिया का भ्रम: दिखाना बनाम जीना
आज कारें सिर्फ ट्रांसपोर्ट नहीं रहीं — वे बन गई हैं “सोशल मीडिया ट्रॉफी”।
LinkedIn और Instagram पर हर नई कार की फोटो एक “मैं सफल हूं” संदेश की तरह होती है।
लेकिन कोई यह नहीं दिखाता कि उस कार के लिए कितने साल की EMI, कितनी नींदें और कितनी बचतें कुर्बान की गईं।
असल में, दिखावे की इस दौड़ में लोग अमीर दिखने की कोशिश में गरीब बन रहे हैं।
सच्चाई का गणित
आइए देखें ₹2 लाख की सैलरी और ₹1.2 लाख की EMI का असली असर:
| खर्चा | अनुमानित राशि (मासिक) | टिप्पणी |
|---|---|---|
| कार EMI | ₹1,20,000 | आय का 60% |
| किराया (मेट्रो शहर) | ₹30,000–₹40,000 | 1BHK के लिए |
| ग्रोसरी व बिल | ₹15,000–₹20,000 | बेसिक जरूरतें |
| पेट्रोल/मेंटेनेंस | ₹10,000–₹15,000 | नियमित खर्च |
| इंश्योरेंस, फोन, नेट | ₹5,000–₹10,000 | अन्य |
| सेविंग्स/इन्वेस्टमेंट | ₹0–₹10,000 | अक्सर छूट जाता है |
यानी महीने के अंत में कुछ नहीं बचता।
7 साल तक यही हाल रहा तो व्यक्ति ₹1 करोड़ के आसपास चुका देगा — उस कार के लिए जिसकी वैल्यू 5 साल में आधी हो जाएगी।
महंगे फैसलों की कीमत
इतनी बड़ी EMI के चलते बाकी ज़रूरी चीजें प्रभावित होती हैं:
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रिटायरमेंट और बच्चों की पढ़ाई की योजनाएं टल जाती हैं
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बचत की जगह कर्ज बढ़ जाता है
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और मानसिक तनाव बढ़ता है
जब आपकी सैलरी का बड़ा हिस्सा दिखावे में चला जाए, तो आजादी खत्म हो जाती है।
लग्ज़री खरीदना गलत नहीं — लेकिन सोचकर
चंद्रलेखा ने अपने पोस्ट में यह भी कहा कि कार रखना गलत नहीं है।
कुछ शहरों जैसे बैंगलोर या गुड़गांव में रोज़ाना कैब से सफर करना महंगा और थकाऊ है — ऐसे में कार लेना समझदारी है।
लेकिन सवाल है:
“क्या आप इसे जरूरत के लिए खरीद रहे हैं, या लोगों को दिखाने के लिए?”
यही फर्क तय करता है कि आप मालिक हैं या बोझ उठाने वाले।
इंस्टाग्राम इकॉनमी का असर
भारत में अब खरीदारी का बड़ा हिस्सा सोशल मीडिया से प्रभावित होता है।
एक Deloitte सर्वे के मुताबिक, 60% शहरी मिलेनियल्स ने स्वीकार किया कि उन्होंने पिछले साल “सोशल मीडिया से प्रेरित” खरीदारी की।
हर कोई इंस्टाग्राम पर अपनी जीतें दिखाता है — लेकिन कोई अपने लोन नहीं दिखाता।
वित्तीय विशेषज्ञ क्या कहते हैं?
वित्त सलाहकार रचित चौला का कहना है:
“भारत का मध्यम वर्ग अब ज़्यादा कमा रहा है, लेकिन कम बचा रहा है। EMI और सोशल प्रेशर ने कल की आय को आज खर्च करने की आदत बना दी है।”
वहीं, वेल्थ कोच हरिनी वैद्यनाथन कहती हैं:
“सच्चे अमीर लोग दिखावा नहीं करते। वे निवेश करते हैं।”
स्मार्ट पैसे का सिद्धांत
अगर आप इस जाल से बचना चाहते हैं, तो कुछ आसान नियम याद रखें:
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50/30/20 नियम अपनाएं — 50% ज़रूरतों पर, 30% इच्छाओं पर और 20% बचत पर।
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भविष्य की सैलरी नहीं, वर्तमान की क्षमता देखें।
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पहले निवेश करें, फिर खर्च करें।
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सफलता का मतलब स्थिरता है, न कि दिखावा।
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थोड़ा इंतज़ार करें। कार आज भी है, पांच साल बाद भी होगी। लेकिन अगर आपने जल्दीबाजी की, तो वित्तीय आज़ादी नहीं रहेगी।
मॉडर्न इंडिया का आईना
यह कहानी सिर्फ एक कार की नहीं, बल्कि एक मानसिकता की है।
भारत का मिडिल क्लास अब “सेविंग्स कल्चर” से “स्पेंडिंग कल्चर” में बदल रहा है।
पुरानी पीढ़ी जहां भविष्य के लिए बचाती थी, नई पीढ़ी “आज दिखाने” के लिए खर्च करती है।
लेकिन याद रखिए — जो संपत्ति दिखती नहीं, वही सच्ची दौलत है।
अमीर दिखने की असली कीमत
समाजशास्त्री इसे कहते हैं “Aspirational Trap” — यानी लगातार बेहतर दिखने की कोशिश में खुद को कर्ज और तनाव में फंसा लेना।
हर नया अपग्रेड नई जिम्मेदारी, नया लोन और नई चिंता लेकर आता है।
धीरे-धीरे आदमी के पास पैसे तो रहते हैं, पर सुकून नहीं।
₹80 लाख की कार भले लोगों की नज़रें खींच ले, लेकिन जब उसकी EMI आपकी आज़ादी छीन ले, तो क्या वह सच में सफलता है?
सच्ची संपत्ति क्या है?
चंद्रलेखा का संदेश बहुत सरल है:
“सच्ची दौलत वह नहीं जो आपके गैराज में खड़ी है, बल्कि वह है जो आपके लिए चुपचाप बढ़ती है — निवेश, शांति और आज़ादी।”
वित्तीय स्वतंत्रता का कोई इंस्टाग्राम फिल्टर नहीं होता।
वह दिखती नहीं, लेकिन महसूस होती है — जब आपको पता होता है कि आपका भविष्य सुरक्षित है।
निष्कर्ष: मिडिल क्लास को खुद से सवाल पूछने की ज़रूरत है
₹80 लाख की कार और ₹2 लाख की सैलरी की कहानी सिर्फ एक वायरल पोस्ट नहीं — एक वेक-अप कॉल है।
भारत का मिडिल क्लास अब यह तय करे कि वह दिखाना चाहता है या जीना।
कारें आती-जाती हैं, लेकिन वित्तीय आज़ादी एक बार गई तो मुश्किल से लौटती है।
तो अगली बार जब आप कोई बड़ा खर्च करने जा रहे हों, खुद से बस एक सवाल पूछिए:
“क्या मैं इसे अपनी खुशी के लिए खरीद रहा हूं — या दूसरों की तालियों के लिए?”
क्योंकि दिन के अंत में, सबसे बड़ी लग्ज़री कार नहीं होती —
बल्कि मन की शांति होती है।

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